वयस्क व्यक्ति की त्वचा आमतौर पर विभिन्न चीजों के प्रभाव में आती है जैसे कि खराब मौसम, पर्यावरणीय बदलाव, रसायन आदि, जिनका इस पर अवांछित प्रभाव पड़ता है।
दूसरी ओर, शिशु की त्वचा नाजुक, मुलायम और संवेदनशील होती है। शिशु की त्वचा अभी भी विकसित हो रही है। शिशु की त्वचा का एपिडर्मिस (बाह्यत्वचा) वयस्क की त्वचा की मोटाई का एक-तिहाई होता है। अत: धूल और बैक्टीरिया शिशु की त्वचा के अपरिपक्व अवरोध को आसानी से भेद सकते हैं।
शिशु की पसीने की ग्रंथियां कम प्रभावी होती हैं, जिसका अर्थ है कि शिशु की त्वचा नमी को आसानी से सोख लेती है और खो देती है। इस वजह से शिशु के शरीर का तापमान विनियमन का कार्य वयस्क की तुलना में बहुत कम होता है। शिशु की त्वचा में सीबम और मेलानिन का उत्पादन भी कम होता है। इन सब का मतलब है कि शिशु की त्वचा पर अधिक ध्यान दिए जाने और अधिक देखरेख किए जाने की आवश्यकता है।