मां बनने के लिए आपको बधाई, आपका नन्हा शिशु आखिरकार अब आपके साथ है! पीठ के दर्द, प्रातःकालीन अस्वस्थता और निकले हुए पेट से अब आप मुक्त हैं। लेकिन अब थकान, जोड़ों का दर्द, सहनशीलता में कमी और नींद की कमी जैसे नए लक्षण प्रकट होते हैं। साथ ही, आपको अपने नन्हे शिशु की भी देखभाल करनी पड़ती है! सौभाग्य से, गर्भवती मां से नवजात की मां बनने की परिवर्तनकारी अवधि को अधिक सहज बनाने के भी उपाय हैं।आपने सही अनुमान लगाया: यह योग है।
प्रसव के बाद किए जाने वाले योग के फायदे (उनमें से कुछ):
- आपके शरीर की मूल शक्ति को पुनर्जीवित करता है
- मांसपेशियों को फिर से सुदृढ़ बनाता है
- हॉर्मोनों का संतुलन दुरुस्त करता है
- चिंता और तनाव भरी भावनाओं को कम करने में मदद करता है
- आपके शरीर को पोषण, आराम और नई ऊर्जा देने में सहयोग करता है
- शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने और द्रवों के परिचालन में सहयोग करता है
- शिशु की देखभाल के लिए आपके अंदर आत्मविश्वास भरता है
नीचे बताई गई इन मुद्राओं में गति, संतुलन और शिथिलन की मदद से आप फिर से मजबूत, ऊर्जस्वित और तंदुरुस्त महसूस करती हैं। कृपया इन मुद्राओं में से किसी का भी अभ्यास करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह लें। और हमेशा की तरह, हर आसन को आराम से बहुत धीरे-धीरे करें।
बालासन (बाल मुद्रा)
यह मुद्रा अधिक शिथिलन (आराम) पाने और गहरी सांस का अभ्यास करने के लिए है और इससे रक्त संचरण में मदद मिलती है।
- फर्श पर घुटनों के बल बैठें, एड़ियों के बल इस तरह बैठें कि पैर के दोनों अंगूठे जुड़े हों और अपने घुटनों को आरामदेह स्थिति तक फैलाएं ।
- अपना धड़ जांघों के बीच लाएं और अपने पेट को जितना संभव हो सके जमीन के करीब लाएं और अपने माथे को फर्श पर रखें।
- अपने टेलबोन या अनुत्रिक को लंबा करें, इस तरह फैलाएं कि आपके सिर का आधार भाग आपकी गरदन से दूर रहे।
- इस मुद्रा को लगभग 30 सेकेंड से लेकर 1 मिनट तक बनाए रखें और इस दौरान गहरी सांस लेते रहें।
सुझाव
- बाल मुद्रा में, थोड़ा केगेल व्यायाम का भी अभ्यास करें। प्रसव के तनाव और दबाव के कारण पेड़ू (पेल्विक) की सतह ढीली पड़कर कमजोर हो जाती है।बहुत सी महिलाओं को खांसने या हंसने के दौरान मूत्र स्राव अथवा प्रसव के बाद यौन संवेदना में कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है। ये व्यायाम पेड़ू की सतह को मजबूत बनाने और उसे दुरुस्त करने में मदद करते हैं।
- अपने पेड़ू की सतह की मांसपेशियों (वे मांसपेशियां जिनकी मदद से आप पेशाब को मध्य में रोकती हैं) को पहचान कर उन्हें लगभफ़ 5 सेकेंड के लिए तानें। फिर उन्हें ढीला छोड़ें।फायदा देखने के लिए इसका अभ्यास रोजाना कम से कम 3-5 बार करें!
भुजंगासन (कोबरा मुद्रा)
यह आसन आपकी पीठ की मांसपेशियों और मेरुदंड को मजबूत बनाने में मदद करता है, और प्रसव से जुड़े पीठ दर्द से राहत दिलाता है। यह पेट तथा नितंब की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाने में मदद करता है।
- एक चटाई पर पेट के बल लेटें और शरीर को ढीला छोड़ दें।
- अपनी हथेलियों को अपने कंधों के नीचे रखें, गहरी सांस लें और अपने कूल्हों और पेड़ू को जमीन पर यथास्थान रखते हुए शरीर के ऊपरी हिस्से को उठाएं।
- ध्यान रखें कि आपके कंधे आपकी गरदन से दूर रहें, चेहरा सामने की ओर रखें और आराम से ऊपर की ओर देखने का प्रयास करें।
- अपने पैर एक साथ रखें, नितंब सिकोड़ें और पीठ के साथ एक आर्क बनाएं। अपनी क्षमता से अधिक जोर न लगाएं और यदि दर्द महसूस हो अथवा असहज लगे तो शरीर तानना (स्ट्रेचिंग) बंद कर दें। यह आपकी पीठ के लिए बढ़िया स्ट्रेच जैसा अनुभव होगा!
- इस मुद्रा में10 सेकेंड तक रहें और फिर जमीन पर लेटी हुई अवस्था में वापस आ जाएं। इसे 2-3 बार करें।
घुटने-मोड़ने वाला नावासन (नौकासन)
बच्चा जनने के दबाव के कारण बहुत सी महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद अमाशयी अलगाव (एब्डोमिनल सेपरेशन) हो सकता है। इस मुद्रा का अभ्यास बहुत ही धीरे व सावधानी से करना चाहिए और यह पेट की मांसपेशियों को दुरुस्त करने और उनमें फिर से कसाव लाने में मदद कर सकती है। अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें कि इस मुद्रा का अभ्यास करना आपके लिए सुरक्षित है या नहीं।
- नितंब से सटाकर अपने घुटनों को मोड़कर सीधा बैठें
- बहुत धीरे-धीरे, 45 डिग्री के कोण पर पीछे जाते हुए और अपनी पीठ को सीधा रखते हुए अपने पैरों को फर्श से ऊपर उठाएं।
- उस आसान सुरक्षित, बिंदु तक जाएं जहां आप अपना संतुलन बनाए रख सकें, और अपनी सांस को रोकें नहीं। सबसे पहले, आपको हमेशा आराम से गहरी सांस ले पाने में सक्षम होना होगा, इसके बाद संतुलन अपने आप बन जाएगा।
- इस मुद्रा को लगभग 30 सेकेंड तक बनाए रखने के दौरान अपने घुटनों को पकड़ने के लिए अपने हाथों का प्रयोग करें। इस दौरान गहरी सांस लेती रहें।
उत्तना शीशोसन (एक्सटेंडेड पपी मुद्रा)
इस आसन से कशेरुकों (वर्टिब्रा) का अच्छी तरह फैलाव होता है जिससे मेरुदंड को सही स्थिति मिलती है।
इससे नितंबों, कूल्हों और बाहों पर भी जोर पड़ता है और वहां की मांसपेशियां मजबूत बनती हैंअपने हाथों और घुटनों को जमीन पर रखते हुए (कलाइयां कंधों के नीचे और घुटने कूल्हों के नीचे रहने चाहिए), कूल्हों को ऊपर की ओर उठाएं। सांस बाहर छोड़ें।
- अपनी टांगों को सीधा रखने की कोशिश करें, बांहों को पूरी तरह बाहर की ओर फैलाएं, हथेलियां नीचे की ओर रखें और माथे को जमीन पर टिकाएं। सांस अंदर खींचें।
- अपने पैरों को जमीन पर जमाकर रखें। इस मुद्रा में 10 सेकेंड तक रहें और फिर गहरी सांस लेते हुए मूल अवस्था में वापस लौटें। 3-5 बार दोहराएं।
विपरीत करणी (पांव, दीवार के सहारे ऊपर करने वाली मुद्रा)
यह आसन शरीर को खोलने में मदद करता है और संचित तनाव को कुछ हद तक दूर करने में भी मदद करता है। थकान से निपटने में भी इससे मदद मिलती है जो कि प्रसव के बाद उत्पन्न होने वाला एक आम लक्षण है। इस मुद्रा के लिए आपको दीवार का सहारा लेने की आवश्यकता होगी। एक टेक (जैसे कि मोटे कंबल) रखें
- जो दीवार से 5-6 इंच दूर रहे। दीवार के सहारे अपने शरीर के दाहिने हिस्से के किनारे को सटाकर बैठें।
- अपने पैरों को दीवार पर ले जाएं और अपने नितंबों को दीवार से लगाकर (या जितना संभव हो सके उतना दीवार के निकट) लेट जाएं और इस दौरान आपकी टेक आपके धड़/पेडू के नीचे रहने चाहिए: यह सब कुछ एक बार में होना चाहिए। इसे बहुत धीरे-धीरे करें!
- आपका धड़ हल्के से आर्क के रूप में रहना चाहिए (टेक के सहारे) और सिर का आधार भाग गर्दन से मुक्त रहना चाहिए। अपने हाथ दोनों ओर से बाहर लाएं और हथेलियां ऊपर की ओर होनी चाहिए।
अपने शरीर को आराम देते हुए और गहरी सांस लेते हुए, इस मुद्रा में लगभग 5 मिनट तक रहें। आप अपनी आंखें बंद कर सकती हैं और इस दौरान अपने शरीर का अवलोकन कर सकती हैं, जो कि बहुत शांतिदायक होता है।